भारत में कुपोषणः फिर वही पुरानी कहानी, करना होगा काफी काम

"कुपोषण दुनिया में बीमारियों की एक मात्र सबसे बड़ी वजह है"- एफएओ


पोषण अभियान को खत्म होने में अब चार साल से भी कम वक्त बचा है, इसके बावजूद कुपोषण एक बड़ी समस्या बना हुआ है। कुपोषण का हल निकालना एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्या है और टिकाऊ विकास का एजेंडा, 2030 के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है। डब्ल्यूएचओ के 2019 के अनुमानों के मुताबिक, भारत में अल्प विकास और कमजोरी का बोझ क्रमशः 20 और 39 फीसदी है, जो क्षेत्रीय (दक्षिण एशिया) औसत से ज्यादा है। इसी प्रकार जनसंख्या स्तर के कई अध्ययनों में भारत में कुपोषण का बोझ बढ़ने की बातें सामने आई हैं। पोषण अभियान देश में कुपोषण के समाधान की कोशिशों में सहायक रहा है, लेकिन पर्याप्त क्रियान्वयन और सामुदायिक पहुंच की दिशा में खासा काम किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा, भारतीय बच्चे "छिपी भूख” या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से भी जूझ रहे हैं। इस गंभीर समस्या से पार पाने के लिए प्रमाण आधारित हस्तक्षेप के साथ ही कई चरणों वाली योजनाएं लागू किए जाने की जरूरत है। एक सामाजिक-सांस्कृतिक समस्या के तौर पर देखी जाने वाली कुपोषण जनसंख्या के लिए महामारी बनी हुई है। अन्य अध्ययनों से पता चला है कि कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति, निरक्षरता और पर्याप्त खुराक की प्रक्रियाओं की जानकारी में कमी जैसी वजहों से भारतीय बच्चों में कुपोषण के जोखिम ज्यादा हैंअंतरराष्ट्रीय स्तर पर बच्चों में गंभीर कुपोषण के लिए 'बर्बादी की प्रमुख रूप से पहचान की गई है और इन मामलों की पहचान और इलाज जल्दी किया जाना चाहिए। वैश्विक स्तर पर पांच (यू5) साल से कम उम्र के लगभग 2 करोड़ बच्चे एसएएम से जूझ रहे हैं और अभी तक यह बच्चों के लिए बड़ी जानलेवा समस्या बनी हुई है। एनएफएचएस-4 के मुताबिक, भारत में पांच साल से कम से 7.5 फीसदी बच्चे एसएएम/भारी बर्बादी से जूझ रहे हैं।


कुपोषण की प्रतिक्रिया में अभी तक कई राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किए जा चुके हैं, हालांकि इनके सकारात्मक नतीजे कम ही मिले हैं। भारत और दुनिया भर में बच्चों में एसएएम की पहचान और समाधान के लिए संस्थागत (अस्पताल आधारित) व्यवस्था का व्यापक स्तर पर उपयोग किया जाता रहा है। इस क्रम में भारत सरकार ने वर्ष 2011 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय) की मदद से कुपोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) के लिए गंभीर कुपोषण से पीड़ित बच्चों के सुविधा आधारित प्रबंधन पर पहली बार दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनका अब नीति आयोग द्वारा चिह्नित आकांक्षी जिलों में परिचालन हो रहा है। वर्ष 2018 में भारत सरकार (जीओआई) ने भारत में कुपोषण की समस्या से पार पाने के लिए एक बहुआयामी योजना पोषण अभियान की पेशकश की थी। इसके अलावा 6 साल की उम्र से कम के बच्चों और उनकी माताओं में कुपोषण और स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के वास्ते पोषण अभियान के प्रयासों को सफल बनाने में एकीकृत बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) खासी अहम साबित हुई हैं। इस साल पहले पोषण माह के आयोजन के मौके पर देश भर में राज्य से ग्राम स्तर तक कई गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। कुछ कुपोषण से पार पाने के लिए प्रयासों को बढ़ा रहे हैं तो कुछ सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के खिलाफ लड़ाई में अन्य कोशिशें करने जा रहे हैं